
बच्चों को सुधरने का वातावरण और मौका दिया जाना जरूरी: सतीश
मथुरा सदस्य किशोर न्याय बोर्ड मथुरा सदस्य सतीश चंद्र शर्मा ने कहा कि अक्सर हमे बच्चों द्वारा किये गए अपराधों और समाज और पुलिस द्वारा उन्हें प्रताड़ित किये जाने की खबरें सुनने को मिलती रहती है.जब हम अपने बच्चों को उनकी गलतियों पर समझा बुझा कर और छोटा मोटा दण्ड देकर छोड़ देते हैं तो उसी उम्र के इन बच्चों को सुधार गृह या जेल के हवाले क्यों कर देते हैं.बच्चों को सुधरने का वातावरण और मौका दिया जाना जरूरी, यदि किशोर न्याय अधिनियम की बात करें तो यह कानून भारतीय दण्ड संहिता यानी आईपीसी के उलट बच्चों को अपराधी मानने के बजाय उन्हें ऐसी गलतियां दोबारा न करने और सुधार का मौका दिए जाने की भावना पर आधारित है. ।हम सभी जानते हैं कि बच्चा अपराधी पैदा होता नहीं है. फिर समाज, समुदाय व परिवार में वो कौन सी चीजें जो उसे अपराध करने की और धकेलती है. हम सभी को इस मानसिकता को समझना होगा. न्यायिक प्रक्रिया के पहले पायदान पर पुलिस होने के चलते बच्चों द्वारा किये गए अपराध के मामलों में पुलिस अधिकारी की संवेदनशीलता बहुत अहम हो जाती है ऐसे में पुलिस के साथ-साथ न्यायिक अधिकारियों की भी क्षमता वृद्धि की आवश्यकता है ताकि वे किशोर न्याय कानून की मूल भावना को समझ सके और कानून सम्मत कार्यवाही कर सकें. ऐसे कई प्रकरण सामने आते हैं जब अपना काम कम करने और असंवेदनशीलता के चलते बच्चों की उम्र को बढ़ा कर दिखा दिया जाता है और उसे व्यस्क कैदियों के साथ जेल में रहने को बाध्य होना पड़ता है. यह खुद समझा जा सकता है बच्चे यदि वयस्क कैदियों के साथ रहेंगे उनका किस तरह से मानसिक और शारीरिक शोषण होगा और छूटने का बाद भी क्या वे आसानी से समाज की मुख्यधारा में वापस लौट पाएंगे.
अतः जैसा की इस कानून में स्पष्ट लिखा है 18 वर्ष से कम उम्र के ऐसे बच्चे जिन्होंने कानून का उल्लंघन किया हो उसे किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष अवश्य प्रस्तुत किया जाए. उनके साथ अपराधी की तरह व्यवहार न कर उनके पुनर्वासन के सक्रिय प्रयास किए जाए. जिस संवेदनशीलता और मानवीय दृष्टिकोण के साथ हम अपने बच्चों को सुधर जाने का अवसर प्रदान करते हैं कहीं न कहीं वही प्रयास हमें इन बच्चों के साथ भी करके देखने जरुरी हैं