
संस्कृत भारती ने मनाई महर्षि बाल्मीकि जयंती।
सनातन संस्कृति के उच्च कोटि के विद्वान थे महर्षि बाल्मीकि
मथुरा। संस्कृत भाषा के आदि कवि एवं रामायण महाकाव्य के रचयिता महर्षि बाल्मीकि जी की जयंती के अवसर पर संस्कृत भारती मथुरा महानगर द्वारा सरस्वती शिशु मंदिर दीनदयाल नगर में विचार गोष्ठी एवं पुष्पांजलि कार्यक्रम आयोजित किया गया।
विचार गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए संस्कृत भारती ब्रजप्रांत मथुरा महानगर अध्यक्ष आचार्य ब्रजेन्द्र नागर ने महर्षि बाल्मीकि जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि पौराणिक कथाओं के अनुसार बालक रत्नाकर का पालन पोषण भील परिवार में हुआ जहां उसे परिवार की जीविका चलाने के लिए लूट हत्या डकैती जैसे अपराधिक संस्कार प्राप्त होते रहे जिसके कारण वे रत्नाकर डाकू कहलाने लगे। एक दिन देवर्षि नारद जी का सम्पर्क रत्नाकर से जंगल में हुआ और नारद जी ने सत्संग के माध्यम से रत्नाकर का हृदय परिवर्तन किया और अधर्म का मार्ग त्याग कर धर्म कार्य करने के लिए प्रेरित किया।वह ही डाकू रत्नाकर भगवत भक्ति में लीन हो कर मां सरस्वती की कृपा से आदि कवि एवं रामायण महाकाव्य के रचयिता महर्षि बाल्मीकि जी के नाम से अमर हो गए।
इस अवसर पर गोष्ठी के मुख्य वक्ता संस्कृत भाषा के विद्वान ज्योतिषाचार्य पंडित कामेश्वर नाथ चतुर्वेदी ने अपने संबोधन में कहा कि आदि कवि महर्षि बाल्मीकि जी का जन्म त्रेता युग में आश्विन पूर्णिमा शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। वे त्रिकालदर्शी व ज्योतिष शास्त्र के प्रकांड विद्वान थे उन्होंने भगवान विष्णु के अवतार मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जी के आदर्श चरित्र का वर्णन भगवान के अवतार लेने से पूर्व ही संस्कृत भाषा के महान धर्म ग्रंथ रामायण महाकाव्य में लिख दिया था यह मां सरस्वती की कृपा और ब्रह्मा जी के आशीर्वाद से ही सम्भव हुआ और बालक रत्नाकर भगवत कृपा से संस्कृत भाषा के महान धर्म ग्रंथ रामायण महाकाव्य की रचना कर के महर्षि बाल्मीकि के नाम से विख्यात हो गए।
संस्कृत भारती मथुरा महानगर प्रचार प्रमुख रामदास चतुर्वेदी शास्त्री ने कहा कि महर्षि बाल्मीकि जी शस्त्र व शास्त्र के ज्ञाता थे उन्होंने अपने आश्रम में माता सीता जी को आश्रय दिया और लव व कुश को शस्त्र और शास्त्र दोनों विद्याओं में पारंगत किया था । इस अवसर पर ज्योतिषाचार्य पं दीपक , पंकज चतुर्वेदी एवं साहित्याचार्य पं शरद, सौरभ शास्त्री ने उनका जीवन परिचय बताते हुए कहा कि महर्षि बाल्मीकि जी का बचपन का नाम रत्नाकर था उनकी माता का नाम चर्षणी देवी तथा पिता प्रचेता ऋषि थे जिन्हें वरुण नाम से भी जाना जाता है।
इस अवसर पर संस्कृत भारती न्यास सचिव गंगाधर अरोड़ा, योगेश उपाध्याय आवा, आचार्य मुरलीधर चतुर्वेदी, हरस्वरुप यादव, जगदीश प्रसाद मौर्या एडवोकेट, संदीप चौधरी,सरदार राजेन्द्र सिंह होरा, कमलेश मौर्या एडवोकेट, ऋषभ गोविन्द,तरुण नागर आदि ने भी अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि महर्षि बाल्मीकि केवल एक समाज व क्षेत्र के महापुरुष नहीं थे उन्होंने सदैव विश्व कल्याण के लिए कार्य किया है वे सर्व समाज के लिए प्रेरणा स्रोत हैं।
गोष्ठी का शुभारंभ महर्षि बाल्मीकि जी के चित्र पर माल्यार्पण व पुष्पांजलि अर्पित कर किया गया। गोष्ठी का संचालन संस्कृत भारती महानगर सहमंत्री भगतसिंह आर्य द्वारा किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ ध्येय मंत्र से तथा समापन कल्याण मंत्र से किया गया।।