जवाहर बाग कांड की छठवीं बरसी पर जांबाज पुलिस अधिकारियों को दी गई श्रद्धांजलि

 

बलिदानी एसपी मुकुल द्विवेदी की पत्नी का छलका दर्द, बोलीं- सरकार और सीबीआई जांच से नहीं संतुष्ट

 

मथुरा। जवाहर बाग कांड की 6 वीं वर्षी पर अपनी शहादत देने वाले जांबाज पुलिस अधिकारियों को मथुरा वासी उनके चित्र पर पुष्प अर्पित कर याद कर रहे हैं। अपनी जान देकर मथुरा की शान जवाहर बाग को कब्जा मुक्त कराने वाले एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी के चित्र पर उनकी पत्नी ने पुष्प अर्पित करते हुए उनकी वीरता को याद किया। इस मौके पर शहीद एसपी सिटी की पत्नी ने मुकुल द्विवेदी के नाम स्मारक और प्रतिमा लगाने के काम में शासन पर अनदेखी का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि 6 साल बीत चुके हैं, लेकिन, जवाहर बाग में शहीद की प्रतिमा नहीं लगाई गई।

 

गौरतलब हो कि 2 जून 2016 को जनपद में प्रदेश को हिला देने वाली घटना जवाहर बाग हिंसक कांड हुआ था, इसमें तत्कालीन एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी और एक इंस्पेक्टर संतोष यादव सहित 29 लोगों की जान चली गई थी, सरकारी जमीन खाली कराते समय कथित सत्याग्रहियों ने पुलिस टीम पर हमला कर दिया था। जवाहर बाग में हिंसा करीब 6 घंटे तक चली थी। शहीद एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी की पत्नी हर वर्ष श्रद्धांजलि देने के लिए जवाहर बाग पहुंचती है।

जवाहर बाग कांड के 6 साल बाद एक बार फिर मथुरा वासियों की आंखें उस काले दिन को याद कर नम हो गईं। शहर वासियों ने जवाहर बाग पहुंच कर मुकुल द्विवेदी वाटिका में शहीद एस पी सिटी मुकुल द्विवेदी के चित्र पर पुष्प चढ़ा कर श्रद्धा सुमन अर्पित किए। इस दौरान वहां सभी आंखें नम थीं। श्रद्धा सुमन अर्पित करने वालों का एक ही कहना था कि शायद दोनों जांबाज पुलिस अधिकारी अपनी शहादत न देते तो जवाहर बाग खाली न होता।

 

गुरुवार सुबह एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी की पत्नी अर्चना द्विवेदी अपने बहनोई सतीश पांडेय के साथ जवाहर बाग पहुंचीं। बलिदान स्थल पर श्रद्धांजलि देते हुए अर्चना द्विवेदी ने कहा, आज छह साल हो गए। आज तक बलिदानियों के नाम पर स्मारक तक नहीं बन सका। उनके नाम पर पार्क का नामकरण नहीं हुआ। उनको जिला उद्यान अधिकारी जगदीश प्रसाद के माध्यम से जानकारी मिली कि प्रतिमा लगवाने के लिए शासन को जो प्रस्ताव भेजा था, वह खारिज हो गया। हर बार बलिदानी का दर्जा देने की मांग की गई। पूर्व ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा ने भी इसकी घोषणा की थी, लेकिन वह भी कार्य नहीं हुआ। भाजपा सरकार अपना एक कार्यकाल पूरा कर चुकी और दूसरी बार फिर आ गई। सरकार ने कुछ नहीं किया। इसे केवल एक राजनैतिक मुद्दा बना लिया गया। वह सीबीआइ जांच और सरकार के रवैये से संतुष्ट नहीं हैं। उन्होंने कहा, दस गुणा दस वर्गगज की भूमि मांगी थी, जिस पर एक चबूतरा मैं अपने खर्च से बनवा दूंगी। ताकि वहां श्रद्धा के फूल चढ़ा सकूं, लेकिन वह भी नहीं हुआ। कई बार मुख्यमंत्री से मिलने के लिए उनके कार्यालय से समय मांगा गया, नहीं मिला। श्रद्धांजलि देने पहुंचे मांट के विधायक राजेश चौधरी ने कहा, बलिदानियों का स्मारक बनना चाहिए। विधायक श्रीकांत शर्मा ने भी प्रयास किए थे। किस वजह से नहीं बन सका है। यह तो वही जानें। बोले, मुख्यमंत्री से व्यक्तिगत मुलाकात करेंगे। उनको प्रत्यावेदन भी देंगे और स्मारक बनवाने के प्रयास करेंगे।

 

 

क्या था जवाहर बाग हिंसा कांड

 

मार्च 2014 में मध्य प्रदेश के सागर जिले से दिल्ली के लिए स्वाधीन भारत विधिक सत्याग्रह संगठन बैनर तले करीब डेढ़ हजार कार्यकर्ता रामवृक्ष यादव के साथ निकले थे, रात होने के कारण मथुरा जनपद जिला प्रशासन से जवाहर बाग में 2 दिन ठहरने की अनुमति मांगी गई थी, इसके बाद रामवृक्ष यादव ने अपने साथियों के साथ जवाहर बाग पर अवैध कब्जा कर लिया था. जब भी जिला प्रशासन जमीन खाली कराने के लिए पहुंचता था उसे बैरंग लौटना पड़ता था. धीरे-धीरे जवाहर बाग अधिवक्ता और पुलिस के ऊपर भी मारपीट की घटनाएं को अंजाम देता था. मामला न्यायालय में जा चुका था। कोर्ट ने 2 जून 2016 को जवाहर बाग खाली कराने के लिए आदेश दिए थे।

2 जून 2016 समय तकरीबन शाम 4ः30 का था. सरकारी जमीन खाली कराने के लिए तत्कालीन एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी पूरी फोर्स के साथ जवाहर बाग पहुंचे थे, लाउडस्पीकर से कथित सत्याग्रहियों को सरकारी जमीन खाली कराने के लिए समझा रहे थे, तभी लोगों ने पुलिस टीम पर पथराव, फायरिंग और हथगोला से हमला कर दिया। जवाहर बाग में भीषण आगजनी हुई। पुलिस को अपनी जान बचाने के लिए भागना पड़ा। तभी कथित सत्याग्रहियों ने तत्कालीन एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी और एक इंस्पेक्टर संतोष यादव की गोली मारकर हत्या कर दी। हत्या की सूचना मिलने के बाद पुलिस फोर्स ने जवाहर बाग में मोर्चा संभाला। चारों तरफ आग ही आग दिखाई दे रही थी, हत्याकांड में कथित सत्याग्रहियों की भी मौत हुई।

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