
सोने से बनी पुण्य कोटि में विराजे भगवान रंगनाथ
मथुरा।उत्तर भारत के दक्षिण भारतीय शैली के विशालतम रंगनाथ मंदिर का दस दिवसीय ब्रह्मोत्सव वैदिक मंत्रोचार और पूजा पाठ के साथ शुरू हुआ। ब्रह्मोत्सव के पहले दिन सुबह के समय भगवान रंगनाथ माता गोदा (लक्ष्मी जी) के साथ सोने से बनी पुण्य कोटि में विराजमान हुए। मंदिर से शुरू हुई सवारी गाजे बाजे के साथ बड़े बगीचा पहुंची जहां कुछ देर विश्राम करने के बाद सवारी वापस मंदिर आई। ब्रह्मोत्सव की शुरुआत से पहले भगवान रंगनाथ के सेनापति विश्वक्सेन का आह्वान पूजन अर्चन किया गया। पूजन अर्चन के बाद उनको चांदी से बनी पालकी में विराजमान किया गया। – इसके बाद परम्परागत वाद्य यंत्रों की ध्वनि के साथ शुरू की गयी सवारी। विश्वक्सेन ब्रह्मोत्सव के लिए की गयी व्यवस्थाओं का जायजा लेने – चांदी की पालकी में विराजमान होकर निकले। – ब्रह्मोत्सव की शुरुआत बुधवार की प्रातः शुभ मुहूर्त में ध्वजारोहण की परंपरा के साथ हुई। शुभ मुहूर्त में मंदिर के पुरोहित विजय मिश्रा ने वैदिक
मंत्रों के मध्य उत्सव प्रारम्भ करने के लिए मंदिर के महंत गोवर्धन रंगाचार्य महाराज के निर्देशन में ध्वजारोहण के समय भगवान गरुड़ का पूजन पुजारी राजू स्वामी से कराया। इसका उद्देश्य भगवान गरुड़ द्वारा समस्त देवी देवताओं को ब्रह्मोत्सव की सूचना देना है और समस्त उत्सव की बागडोर गरुड़ के हाथों में सौंपना है। पूजन के बाद सोने से बने स्तम्भ पर गरुड़ की ध्वजा चढ़ा दी जाती है। उन्होंने बताया कि वृंदावन का रंगनाथ मंदिर उत्तर भारत में दक्षिण भारतीय शैली का सबसे विशाल मंदिर है। इस मंदिर के मुख्य भगवान गोदारंगमत्रार हैं। रंगनाथ मंदिर को दिव्य देश की उपाधि मिली हुई है यानि वह देवस्थान जहां हर दिन भगवान का उत्सव हो। इन्हीं उत्सवों में प्रमुख है ब्रह्मोत्सव, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह उत्सव स्वयं भगवान नारायण के लिए ब्रह्मा ने किया था। श्री रंगनाथ मंदिर में वर्षों से ब्रह्मोत्सव प्रति वर्ष होली बाद कृष्ण पक्ष की दौज से शुरू होता है।