19 मार्च को बलदेव में विश्व प्रसिद्ध हुरंगे की मचेगी धूम, दाऊजी के हुरंगे में पड़ती है पोतनों की मार

 

मथुरा। श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलदेव (दाऊजी महाराज) की नगरी में इस बार विश्व प्रसिद्ध हुरंगा 19 मार्च को मनाया जाएगा। जिसकी तैयारियों में मंदिर प्रशासन जुटा हुआ है। 20 क्विंटल टेसू के फूलों से रंग तैयार किया जा रहा है। यहां दाऊजी मंदिर में 45 दिवसीय होली महोत्सव बंसत पंचमी से प्रारंभ होकर रंग पंचमी तक चलता है। इन दिनों समाज गायन निरंतर जारी है।

समाज गायन में गाये जाने वाले पद अष्टछाप कवियों द्वारा रचित हैं। प्रातः आरती व शयन के समय मंदिर के जगमोहन में सेवायत पंडा होली के पद दाऊजी महाराज के सम्मुख सुना रहे हैं। खेलत बसंत बलभद्र देव, लीला अनंत कोई लखै न भेद…जैसे गीतों पर समाज गायकी प्रातः श्रृंगार के समय से ही प्रारंभ हो जाती है। श्रीदाऊजी महाराज के समुख जगमोहन में समाज गायन के स्वर ढाप की थाप के साथ मन्दिर में गुंज रहे हैं। समाज गायन में उच्च स्वर में सप्तक गायन की परम्परा यहाँ की अनूठी शैली है। होली के अवसर पर धमार, सारंग, विलावत आदि रागों में ध्रुपद एक ताल और तीन ताल में गाये जा रहे हैं। मंदिर में इस बार 19 मार्च को हुरंगा है।

बरसाने की लठामार होली में जहां लाठियों से महिलाएं पुरुषों पर वार करती हैं, वहीं यहां हुरंगे में पोतनों से हुरंगों की धुनाई होती है। पोतने की मार का यह लाइव दर्शकों के लिए सबसे बड़ा रोमांच होता है। यही नहीं मंदिर में टेसू रंग की धारा प्रवाहित होती है। सतरंगी इंद्रधनुष के रंगों के समान उड़त गुलाल लाल भये बदरा के सजीव दृश्य दाऊजी मंदिर में ही साकार होते हैं।

मंदिर पुजारी रामनिवास शर्मा ने बताया प्रसिद्ध हुरंगा का आयोजन बलदेव में 19 मार्च को होगा। इसके लिए सभी तैयारियां जोरों पर चल रही हैं। विभिन्न प्रकार के गुलाल, भुड़भुड़ व टेसू के रंग हाथरस सहित अन्य स्थानों से मंगाए जा रहे हैं। होलाष्टक से श्री दाऊजी महाराज को टेसू के रंग लगाकर श्रद्धालुओं पर इस रंग की वर्षा की जा रही है। सुजीत वर्मा ने बताया विश्व प्रसिद्ध हुरंगा का इतिहास 425 वर्ष पुराना है। माना जाता है कि श्री बल्दाऊजी के विग्रह की प्रतिष्ठा स्थापना 1582 में हुई। उनके स्थापत्य काल से बलदाऊ के हुरंगा खेलने की परंपरा पड़ी। हुरंगा के लिए गोप व गोपी स्वरूप तैयारी कर रहे हैं। गोप समाज गायन में श्री दाऊजी महाराज को विभिन्न पदों से सुशोभित कर हुरंगा की तैयारी कर रहे हैं। दाऊजी के हुरंगा को देखने के लिए देश-विदेश से लाखों लोग प्रतिवर्ष आते हैं। विश्व प्रसिद्ध हुरंगे को भव्य बनाने के लिए करीब 28 क्विंटल टेसू के फूल, 150 बोरा अबीर-गुलाल, 15 बोरा भुडभुड, 150 किलो गुलाब गेंदा के फूल मंगवाए गए। टेसू के फूलों फिटकरी और केशर से तैयार रंगों को मंदिर प्रांगण में हौदों में भरा गया। मंदिर सेवायत पुष्पेंद्र पांडेय ने बताया श्री दाऊजी के हुरंगा का अपना विशेष महत्व है। इसकी पहचान पूरे विश्व में है। इसमें सभी गोप व गोपिका हुरंगा खेलती हैं। गोपी, गोपों के कपड़े फाड़कर उनके कोड़े बनाकर गोपों की पिटाई करती हैं, तो बड़ा ही आनंद व हर्ष उल्लास छा जाता है। अविनाश शर्मा ने बताया यह हुरंगा श्रीकृष्ण-बलराम का साक्षात स्वरूप है। इसमें भगवान के स्वरूप में गोप और गोपिका होते हैं। इसमें शामिल होने वाले भक्त भी आनंदित हो जाते हैं। हुरंगा की तैयारी जोरों पर हैं। आचार्य विष्णु जी महाराज ने बताया होली के दौरान जिसने दाऊजी महाराज का हुरंगा नहीं देखा तो समझो उसने ब्रज की होली महोत्सव का आनंद नहीं लिया। होली के आनंद की कल्पना शब्दों में बखान नहीं की जा सकती। कहा भी जाता है ब्रज की होरी को देखकर ब्रह्मा जी भी ललचा गए।

वेलडन! दिस इज हुरंगा भगवान दाऊजी महाराज। विदेशी भक्तों के मुंह से ये शब्द दाऊजी के हुरंगा को देखने के बाद निकलते है। विदेशों से आए भक्त इस अद्भुत नजारे को देख आनंदित हो जाते है। कोरोना काल से पूर्व यहां मंदिर प्रांगण में रंगों से सराबोर होकर विदेशी भक्त जमकर आनंद उठाते चले आ रहे है।

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