
बाबा जयगुरूदेव के उत्तराधिकारी ने संत्संग में की अमृत वर्षा
गुरु बिन भवनिधि तरै न कोई, जो विरंचि शंकर सम होई।’’
मथुरा। विख्यात परम सन्त बाबा जयगुरुदेव महाराज के पूज्वर गुरु स्वामी घूरेलाल महाराज का पारम्परिक पावन वार्षिक भण्डारा महापर्व (जयगुरुदेव सत्संग-मेला) इन दिनों बाई पास पर चल रहा है। सोमवार 73 वें पावन वार्षिक भण्डारा महापर्व का मुख्य पूजन एवं सत्संग का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। बाबा जयगुरुदेव जी के उत्तराधिकारी पंकज महाराज ने सत्संग में अमृतवाणी की वर्षा करते हुए कहा -‘‘गुरु बिन भवनिधि तरै न कोई, जो विरंचि शंकर सम होई।’’
सोमवार प्रातःकालीन बेला में पूज्य पंकज महाराज ने अपने मुख्य सत्संग में अमृतवाणी की वर्षा की और भारत के सनातन अध्यात्मवाद की खुली व्याख्या करते हुए जीते जी प्रभु-प्राप्ति का सरल से सरल मार्ग बताया। सत्संग के समय जयगुरुदेव मेला-मैदान पूरा खचाखच भर गया था। श्रोताओं के हाथ में सफेद रंग के लहराते हुए ‘जयगुरुदेव’ झण्डों का दृश्य बहुत मनोरम लग रहा था। बाबा जयगुरुदेव जी के उत्तराधिकारी ने कहा कि मानव-सृष्टि में गुरु सबकी अनिवार्य आवश्यकता है। गुरु बिन ज्ञान नहीं हो सकता। गुरु के बगैर न तो आत्म-कल्याण होगा, न जीते जी परमात्म दर्शन हो सकता है। कहा भी गया है-‘‘गुरु बिन भवनिधि तरै न कोई, जो विरंचि शंकर सम होई।’’ गुरु परमात्मा की शक्ति का प्रकट रूप होता है। इन्द्रियों के घाट पर बैठकर महापुरुषों की, संतों की पहचान नहीं हो सकती। परम्पराओं, रीति-रिवाजों और रश्मों की फँसी, मनुष्य जाति को अपने कल्याण और भगवान के भजन के लिए संतों का मिलना बहुत ही जरूरी है। कर्मकाण्डों, रश्मों, रिवाजों, व्रत, उपवासों से पुण्य की प्राप्ति तो हो सकती है लेकिन आत्म-कल्याण और परमात्मा का साक्षात्कार असंभव है।