श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान ने पूरी भूमि का मालिक बताया, 1968 में किया गया समझौता है गलत

 

दावा : शाही ईदगाह मस्जिद के नीचे भगवान श्रीकृष्ण का गर्भगृह है। इसके अलावा यहां से कई मूर्तियां मिली हैं, जिनका जिक्र राजकीय संग्रहालय में दर्ज है।

 

मथुरा। श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान ने कहा कि जन्मस्थान की पूरी भूमि पर उसका हक है। रिवीजन पिटीशन को मथुरा में जिला जज की कोर्ट में स्वीकार होने के बाद संस्थान के सचिव और सदस्य ने यह बात कही। उन्होंने इसको लेकर श्रीकृष्ण जन्मस्थान के गेस्ट हाउस में एक प्रेसवार्ता की गई।

इसमें सचिव कपिल शर्मा ने बताया कि ब्रिटिश सरकार से नीलामी में राजा पटनी मल ने 15.70 एकड़ जमीन खरीदी थी। 16 मार्च, 1815 को ईस्ट इंडिया कंपनी ने कटरा केशव देव परिसर को नजूल भूमि के रूप में खुली नीलामी कर राजा पटनी मल को दे दिया था। इसे भगवान श्रीकृष्ण के भव्य मंदिर निर्माण के लिए सबसे ऊंची बोली लगाकर खरीदा गया था। 1882 में वृंदावन के लिए डाली गई रेल लाइन के लिए 2.33 एकड़ जमीन की जरूरत हुई। जिसे राजा पटनी मल के वंशज राय नरसिंह दास और राय नारायण दास ने रेलवे को दे दिया। इसकी एवज में रेलवे ने राजा पटनी मल के वंशजों को 17 सौ 75 रुपए 11 आना 9 पैसे का भुगतान किया। इसके बाद जमीन कुल 13.37 एकड़ बची। श्रीकृष्ण जन्मस्थान और शाही ईदगाह को लेकर विवाद 1832 से कोर्ट में शुरू हुए। कपिल शर्मा ने बताया कि राजा पटनी मल के वंशजों ने और उसके बाद श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट और मुस्लिमों के बीच 1832 से 1965 तक चले सभी मुकदमों के निर्णय हिंदू पक्ष में आए। साथ ही कटरा केशव देव को स्वामी माना जाता रहा। श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के सदस्य गोपेश्वर नाथ चतुर्वेदी ने बताया कि श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ के तत्कालीन संयुक्त सचिव ने एक मुकदमा कटरा केशव देव में बनी मस्जिद व अन्य सम्पत्ति को हटाने को लेकर दायर किया था। इसमें संघ के ही उपमंत्री ने द्विपक्षीय समझौता 12 नवंबर, 1968 को कर लिया। इस कारण 1974 में मुकदमा डिक्री हो गया। जानकारी मिलने पर श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट ने श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ को खत्म कर श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान बना दिया और उप मंत्री को पद से हटाते हुए इस्तीफा ले लिया।

गोपेश्वर नाथ चतुर्वेदी ने बताया कि 1951 में श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट बना था। इसके बाद राजकीय अभिलेखों खसरा, खतौनी, जलकर, गृहकर, मूल्यांकन रजिस्टर आदि में सभी जगह आज तक भूमि स्वामी के रूप में श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट के नाम अंकित हैं। संघ के उपमंत्री के बिना अधिकार किए गए उक्त समझौते को आधार बनाकर ईदगाह की इंतजामिया कमेटी द्वारा नगर पालिका में 1976 में नाम दर्ज कराने के लिए प्रार्थना पत्र दिया था। इस मामले में नगर पालिका के अधिशासी अधिकारी द्वारा जांच की गई जिसके बाद समझौते को अवैध मानकर प्रार्थना पत्र को खारिज कर दिया। श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के पदाधिकारियों का दावा है कि शाही ईदगाह मस्जिद के नीचे भगवान श्रीकृष्ण का गर्भगृह है। इसके अलावा यहां से कई मूर्तियां मिली हैं, जिनका जिक्र राजकीय संग्रहालय में दर्ज है। सचिव कपिल शर्मा और सदस्य गोपेश्वर नाथ चतुर्वेदी दावा करते हैं कि जिस स्थान पर मस्जिद बनी है वह मंदिर के स्थान पर बनी हुई है।

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