कंस वधः मार-मार लठ्ठन झूर कर आए

 

 

मथुरा।  भगवान श्रीकृष्ण की नगरी में सोमवार को द्वापर युग का नजारा था। कंस का वध करने को माथुर- चतुर्वेदी समाज का बच्चा- बच्चा तक उतावला था। सभी के हाथों में सजीली लाठियां थीं। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि कंस इस समाज के लोगों से अपनी जान बख्शने की भीख मांग रहा हो। वहीं यह समाज अत्याचारी राजा के आतंक से मुक्ति दिलाने को उतावला हो रहा था।

 

देश- दुनिया में रहने वाले मथुरा निवासी चतुर्वेदी कंस वध मेले में शामिल थे। सभी का पहनावा अलग था। हाथों में पांच से छह फुट लंबी लाठियां, वह भी काजल और मेंहदी आदि के रंग से सजी हुई। कई के ताल ठोंकते देख ऐसा महसूस हो रहा था कि इनसे बड़ा मल्ल दुनिया में कोई नहीं है। आखिर में चतुर्वेदी समाज ने पहले कंस को तरह- तरह से चिढ़ाया, फिर मार- मार कर दुहरा कर दिया। इसके साथ ही वातावरण में भगवान श्रीकृष्ण और बलदाऊ भैया की जय- जयकार होने लगी। चतुर्वेदियों ने सबसे पहले समाज के प्रमुख बगीचे व लक्ष्मण गढ़, भवंत गढ़, पीपल वाले अखाड़े समेत यमुना के घाट किनारे भांग की ठंडाई छानी। फिर रंग- बिरंगे कपड़ों में तैयार होकर कंस को मारने पहुंचे। सायं हनुमान गली से शुरू हुई कंस वध शोभायात्रा आगरा रोड स्थित कंस टीले पहुंची।

यहां कंस के आधे धड़ को लाठियों से पीटा गया। फिर कंस वध कृष्ण- बलराम शोभायात्र में परिवर्तित होकर आगरा रोड, होली गेट, छत्ता बाजार, विरजानंद मार्ग से विश्रम घाट पहुंची। यहां कंसखार पर कंस के चेहरे को लाठियों से पीटा गया। कंस का वध करने के बाद सभी लोग ‘छज्जू लाए, खाट के पाए, मार- मार लट्ठन झूर कर आए। वही कंस की दाढ़ी लाए, वही कंस की मूंछें लाए’ गाने लगे।

व्हाट्सप्प आइकान को दबा कर इस खबर को शेयर जरूर करें 

Please Share This News By Pressing Whatsapp Button 

विज्ञापन बॉक्स
विज्ञापन बॉक्स

Related Articles

Close
[avatar]