संस्कृत व्याकरण पर हो नवीन दृष्टिकोण से शोध

 

मथुरा। वृंदावन शोध संस्थान के 55वें स्थापना दिवस समारोह में शुक्रवार को व्याख्यान एवं समाज गायन का आयोजन किया गया। सर्वप्रथम ‘भक्ति परंपरा और संस्कृत व्याकरण’ विषयक व्याख्यान का आयोजन किया गया।मुख्य वक्ता राधा ब्लिनदेरमान ने पावर पॉइंट प्रजेंटेशन के माध्यम से विचार रखे। डॉ. इंदु राव ने बताया संस्कृत व्याकरण पर नवीन दृष्टिकोण से शोध कार्य किया जाना चाहिए।

उप-निदेशक डॉ. एसपी सिंह ने कहा है संस्थान का प्रयास है कि संस्कृत व्याकरण की पांडुलिपियों पर शोध कार्य कराकर उन्हें प्रकाशित किया जाए। डॉ. अच्युतलाल भट्ट ने बताया वेदों के छह अंगों में से एक व्याकरण है। गौड़ीय आचार्यों ने व्याकरण को भी ईश्वर प्राप्ति का साधन बताया। द्वितीय सत्र में ‘समाज गायन परंपरा और विस्तार’ विषयक व्याख्यान के अंतर्गत डॉ. कृष्णचंद्र गोस्वामी ने कहा रसिकों द्वारा राधाकृष्ण लीला गायन की विशिष्ट शैली को समाज गायन कहते हैं। इसमें सूरदास, परमानंद दास, हित हरिवंश, हरिराम व्यास एवं स्वामी हरिदास आदि रसिकाचार्यों द्वारा रचित ब्रजभाषा पदावलियों का गायन किया जाता हैं।

तत्पश्चात किशोरीशरण भक्तमाली (टटिया स्थान), वृंदावनबिहारी गोस्वामी (निम्बार्ककोट), राकेशबिहारी दुबे (राधाबल्लभी) द्वारा समाज गायन की प्रस्तुति की गई। पखावज पर कृष्णगोपाल, सारंगी पर जुगलकिशोर एवं सितार पर पुलकित ने संगत की। कार्यक्रम में जिला विद्यालय निरीक्षक डॉ. भास्कर मिश्र, डॉ. चंद्रप्रकाश शर्मा, डॉ. राजेश शर्मा, संस्थान अध्यक्ष आरडी पालीवाल, रसिकमाधवदास, आचार्य विष्णुमोहन नागार्च, नवलीशरण, मोहनलाल मोही, सुरेशचंद्र शर्मा, सुकृतलाल गोस्वामी, रमेश शिशु, मालती शिशु, सुशीला गुप्ता, डॉ. कमलेश पारीक, अच्युता दाहात, डॉ. सोमकांत त्रिपाठी, ओंकारनाथ सागर, डॉ. ओम, रजत शुक्ला, प्रगति शर्मा मौजूद रहे।

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